Wednesday, April 1, 2020

गाँव तू फिर याद आया…



गाँव तू फिर बहुत याद आया है....
अभी-अभी तो मैं तुझे बहुत बुरा-भला कहके, तुझसे मुंह फेरकर शहर आया था।
मुझे याद है, जाते हुये मैंने ही तुझसे अपने हाथ को छुड़ाया था।
हाँ ये भी मुझे याद है जाते हुए मैं नहीं तू उदास था।
सच कहूँ जब से आया हूँ शहर ने हाथ लगाना तो छोड़, आँख भर देखा भी नहीं।
गाँव तू फिर बहुत याद आया है....
मुझे याद है कितनी भी बड़ी परेशानी हो तू कभी किसी को जाने के लिए नहीं कहता।
तू कभी अपनों को ऐसा अकेला बेबस सड़कों पर कभी नहीं छोड़ता,
तू हमेशा यही तो कहता है मत चिंता कर, यह समय भी चला जाएगा।
गाँव तू फिर बहुत याद आया है....
तू उस माँ की तरह ही तो है, जिसे आखिर सांस तक बच्चों की ही फिकर बनी रहती है।
लाख परेशानी हो, तेरे बस में हो या न हो,
हमारी कमियों के बाद भी तू हमें छोड़ता नहीं,
और ज़िंदगी लुटाने के बाद भी शहर है कि अपनाता ही नहीं। 
गाँव तू फिर बहुत याद आया है....

सादर,
डॉ॰ स्वतंत्र रिछारिया

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